Anil Ambani Reliance Power : अनिल अंबानी को बड़ा झटका, रिलायंस पावर 3 साल के लिए बैन

Anil Ambani Reliance Power : रिलायंस पावर और रिलायंस एनयू बीईएसएस लिमिटेड पर कथित रूप से फर्जी दस्तावेज जमा करने के आरोप में सख्त कार्रवाई की गई है। इन कंपनियों को सरकारी सौर ऊर्जा कंपनी SECI की निविदाओं में भाग लेने से तीन साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है।

Anil Ambani Reliance Power
Anil Ambani Reliance Power , फोटो क्रेडिट – facebook 

हाल के दिनों में अनिल अंबानी के लिए अच्छी खबर के तुरंत बाद बुरी खबर आना एक पैटर्न सा बन गया है। एक दिन पहले ही रिलायंस पावर की सब्सिडियरी रोजा पावर के कर्ज मुक्त होने की खबर आई थी, लेकिन इसके तुरंत बाद रिलायंस पावर और रिलायंस एनयू बीईएसएस लिमिटेड पर कथित फर्जी दस्तावेज जमा करने के कारण SECI की निविदाओं में तीन साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया। इससे पहले सेबी ने भी अनिल अंबानी पर सिक्योरिटी मार्केट में पांच साल का बैन लगाया था।

फर्जी बैंक गारंटी का खुलासा, रिलायंस पावर पर तीन साल का प्रतिबंध

सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सेकी) ने हाल ही में जारी किए गए नोट में बताया कि महाराष्ट्र एनर्जी जेनरेशन, जिसे रिलायंस एनयू बीईईएसएस के नाम से भी जाना जाता है, द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की जांच में गंभीर अनियमितता पाई गई है। 1,000 मेगावाट/2,000 मेगावाट घंटे की सिंगल बेस्ड बीईईएसएस परियोजना की निविदा में प्रस्तुत ईएमडी (विदेशी बैंक द्वारा जारी) की बैंक गारंटी फर्जी पाई गई। यह मामला सेकी द्वारा आयोजित प्रतिस्पर्धी बोली के तहत इस परियोजना की स्थापना से संबंधित चयन प्रक्रिया (RFS) से जुड़ा है।

फर्जी बैंक गारंटी के बाद निविदा प्रक्रिया रद्द, रिलायंस एनयू बीईएसएस पर कार्रवाई

सेकी ने रिलायंस पावर और रिलायंस एनयू बीईएसएस द्वारा प्रस्तुत फर्जी दस्तावेज के बाद अपनी निविदा प्रक्रिया रद्द कर दी। ई-रिवर्स नीलामी के बाद गड़बड़ी पाए जाने पर सेकी ने दोनों कंपनियों को आगामी तीन साल तक निविदाओं में भाग लेने से रोक दिया है। निविदा शर्तों के अनुसार, फर्जी दस्तावेज पेश करने के कारण बोलीदाता को भविष्य की निविदाओं में भागीदारी से वंचित किया जा सकता है।

जांच में यह सामने आया कि रिलायंस एनयू बीईएसएस, जो रिलायंस पावर लिमिटेड की सब्सिडियरी है, ने अपनी मूल कंपनी की ताकत का उपयोग करके वित्तीय पात्रता शर्तों को पूरा किया था। हालांकि, आगे की जांच में यह पाया गया कि बोलीदाता के सभी वाणिज्यिक और रणनीतिक फैसले मूल कंपनी द्वारा संचालित किए गए थे। इसके बाद, रिलायंस पावर को भी भविष्य की निविदाओं में भाग लेने से रोकने का निर्णय लिया गया।

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